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सरदार वल्लभभाई पटेल

प्रारंभिक जीवन का

सरदार वल्लभभाई पटेल

जन्म: 31 अक्टूबर, 1875

जन्म स्थान: नडियाद शहर, गुजरात

प्रारंभिक जीवन और स्कूली शिक्षा: करमसद, पेटलाद और नडियाद।

माता-पिता: पिता झवेरभाईएक किसान थे। माँ लाड़ बाईएक साधारण गृहिणीं थीं।

पत्नी: झवेरबा, जिनका 1909 में बहुत कम उम्र मे निधन हो गया

बच्चे: बेटी मणीबेन (1903 में जन्मी); बेटा डाह्याभाई (जन्म 1905 में)

मृत्यु: 15 दिसंबर 1950 को मुंबई स्थित बिरला हाउस में

सरदार वल्लभभाई पटेल

वल्लभभाई पटेल (31 अक्टूबर, 1875 – 15 दिसंबर, 1950) भारत की एकजुटता और अखंडता के प्रतीक और ब्रिटिश भारत मे किसान आंदोलन के मुखिया थे। वह भारत के एक राजनैतिक और सामाजिक नेता थे जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद देश के संघर्ष मे एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। स्वतंत्रता के बाद भारत को एकीकृत करने में उन्हों ने देश का मार्गदर्शन किया। उन्हें “भारत के लौह पुरुष” के रूप मे जाना जाता है। बारडोली किसानों के आंदोलन की शानदार जीत के बाद लोगों ने उन्हें “सरदार”नाम दिया। व्यावसायिक स्तर पर सफल वकील के रूप मे वे सर्व प्रथम महात्मा गांधी के काम और दर्शन से प्रेरित हुए थे। वल्लभभाई पटेल ने बाद मे ब्रिटिश राज द्वारा अपनाई गई दमनकारी नीतियों के खिलाफ अहिंसक एवं सविनय असहयोग आंदोलन के लिए गुजरात के खेड़ा, बोरसद और बारडोली के किसानों को संगठित किया। महात्मा गांधी के मार्गदर्शन में वे इस भूमिका मे गुजरात के सबसे प्रभावशाली नेता के रूप मे उभर आए। वह 1931 में कराची कांग्रेस सत्र मे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व करके अग्रीम युवा नेता बने। राष्ट्रीय स्तर पर 1931 से सभी राजनीतिक आयोजनों मे उन्हों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह 1934 और 1937 के चुनावों के लिए पार्टी को संगठित करने और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे। परिणाम स्वरूप स्वतंत्रता संग्राम के लगभग सभी नेताओं के साथ सरदार पटेल की भी गिरफ्तारी हुई।

 

भारत के पहले गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप मेंसरदार पटेल ने पंजाब और दिल्ली में शरणार्थियों के लिए राहत कार्य का आयोजन किया। साथ ही साथ देश भर मे शांति स्थापित करने मे भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरदार पटेल ने 562 अर्ध-स्वायत्त रियासत और ब्रिटिश कालीन कालोनियों को जोड़ एक अखंड भारत के निर्माण का भी कारभार संभाला। सरदार के नेतृत्व, उदार कूटनीति एवं सैन्य कार्यवाई के विकल्प (और उपयोग) के कारण लगभग हर रियासत भारत के साथ विलीनीकरण के लिए तैयार हो गई। भारत के लौह पुरुष सरदार पटेल को आधुनिक अखिल भारतीय सेवाओं की स्थापना के लिए भारत के सिविल सेवकों के ‘संरक्षक संत’ के रूप मे भी याद किया जाता है। सरदार पटेल भारत मे संपत्ति के अधिकार और मुक्त उधोग के शुरुआती प्रस्तावकों मे से एक थे। मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यकों के अधिकार, प्रांतीय संविधान और अनुसूचित क्षेत्रों के सीमांकन संबंधित संवैधानिक समिति के अध्यक्ष के रूप मे उनका योगदान भारतीय संविधान के स्तंभ स्वरूप है।

सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने बहुमुखी नेतृत्व से भारत की एकता को बनाए रखने मे महत्पूर्ण भूमिका निभाई। स्वतंत्रता के बाद के वर्षों मे भारत के निर्माण मे उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। सरदार पटेल ने भारत के पहले गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप मे सुशासन का अर्थ “सु-राज”का पालन किया। वे वैमनस्य से दूर रहकर हंमेशा से लोगों को एकजुट रखने मे मानते थे। उन्हों ने स्वतंत्रता संग्राम मे विभिन्न जातियों और समुदायों कोएक करने के अलावा भारत के किसान समुदाय को संगठित और कार्यशील करने मे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

स्वतंत्रता संग्राम मे जुडने से बहुत पहले ही एक कानूनविद् के रूप में सरदार पटेलकी संकल्प-शक्ति और दृढताउनके कैरियरके प्रति उनके जूनून मे देखा जा सकता है। तेजस्वी प्रतिभा के स्वामी सरदार हमेशा से बैरिस्टर बनना चाहतेथे। हालांकि, उन दिनों मेंइस सपने को साकार करने के लिए उनका इंग्लैंड जाना आवश्यक था। एक सामान्य किसान परिवार मे पैदा होने की वजह से उनके पास भारत मे भी कॉलेज मे शामिल होने के लिए योग्य वित्तीय साधन नहीं थे। ऐसे मे इंग्लैंड की यात्रा तो असम्भव ही थी।

 

हालांकि, इस तरह की अड़चनें इस दृढ़-निश्चयी युवा के लिए कभी भी बाधा नहीं बनी। सरदार के पास हमेशा अपने सपनों को सच करने का एक तरीका होता था। घर से अध्ययन कर उन्होंने स्वशिक्षा प्राप्त की। एक वकील मित्र से किताबें उधार लीं और व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए अदालत के सत्रों मे भाग लेना शुरू कर दिया जहां वे हर तर्क का बारीकी से निरीक्षण करते थे । युवा वल्लभभाई अच्छे परिणाम से परीक्षा मे उत्तीर्ण हुए और गोधरा मे अपनी वकालत शुरू कर दी।

 

उनके चरित्र और करुणा का एक और पहलू बाद मे नजर आया।जब सरदार ने विदेश यात्रा करने की वित्तीय क्षमता प्राप्त की तो उन्होंने पहले अपने बड़े भाई विठ्ठलभाईको कानून की उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड भेजा। विठ्ठलभाई खुद भी एक वकील थे। अपने भाई के लौटने के बाद ही सरदार 1910 मे खुद इंग्लैंड के लिए रवाना हुए।जहाँ वे बैरिस्टर-एट-लॉ परीक्षा मे प्रथम स्थान से उत्तीर्ण हुए। वह 1913 मे भारत लौट आए।

स्वतंत्रता संग्राम मे सरदार पटेल की भूमिका महात्मा गांधी से प्रेरित थी। जब वे दोनों गोधरा मे एक बैठक में मिले थेतब से ही वे मित्र बन गए। खासकर चंपारण सत्याग्रह की सफलता के बाद सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की गतिविधियों का अनुसरण करना शुरू कर दिया।

 

सरदार के लिए निर्णायक क्षण तब आयाजब 1918 मे खेड़ा बाढ़ से तबाह हो गया। फसल का भारी नुकसान भुगत चुके किसानों ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए भारी करों से राहत मांगी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। गांधीजी लड़ाई मे शामिल हो गए लेकिन वे अपना पूरा ध्यान खेड़ा के संघर्ष मे नहीं लगा सकते थे। ऐसी परिस्थिति मे गांधीजी अपनी अनुपस्थिति मे किसानों का नेतृत्व करने के लिए एक व्यक्ति की तलाश कर रहे थे और सरदार ने नेतृत्व लिए स्वयं पहल की। वे कोई भी कार्य आधा-अधूरा नहीं करते थे और इसीलिए उन्होंने सर्वप्रथम अपनी वकील की कैरियर का त्याग किया। अंग्रेजों के खिलाफ की इस असहयोग की लडाई मे शामिल होने से पहेले उन्हों ने खादी का भी स्वीकार किया। सरदार के साथ बातचीत करने के लिए ब्रिटिश सरकार सहमत हुई। बातचीत के बाद कर दरों को वापस भी लिया गया। यह एक शानदार सफलता थी। तब से इस माटी के लाल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

अहमदाबाद के लिए स्वच्छ और नियोजित प्रशासन का मार्ग तैयार करते हुए सरदार शहर के प्रशासन मे अग्रीम रूप से शामिल थे। स्वतंत्रता आंदोलन मे शामिल होने से पहलेवह 5 जनवरी, 1917 को दरियापुर विधानसभा क्षेत्र से एक मत से अहमदाबाद नगर पालिका में चुने गए थे। वे तब वकालत कर रहे थे। सरदार वर्ष 1924 मे अहमदाबाद के नगरपालिका अध्यक्ष चुने गए और वर्ष 1928 तक बने रहे। इस दौरान अहमदाबाद मे बिजली-आपूर्ति, प्रमुख शैक्षणिक सुधार, नगर नियोजन, जल-आपूर्ति और वितरण प्रणाली जैसे कई अन्य जन कल्याणकारी योजनाओं का विस्तार हुआ।

1928 मे सफल खेड़ा सत्याग्रह, नागपुर ध्वज सत्याग्रह और बोरसद सत्याग्रह के बादसरदार ने बारडोली मे फिर एक बार किसानों की अगुआई ली। किसानों ने अंग्रेज़ो द्वारा लागू किए गए भूमि करों मे मनमानी वृद्धि का विरोध किया था। सरदार ने किसानों को संगठित किया और उनसे कहा कि वे कर का एक पैसा भी न दें। सरदार ने किसानों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार को झुकने पर मजबूर किया। यह और एक शानदार जीत थी। ऐसे ही वर्ष 1930  के आंदोलन मे सहभागी होने की वजह से उन्हें 7 मार्च 1930 को गिरफ्तार किया गया था। बाद मे उन्हें वर्ष 1931 में कराची मे कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। वर्ष 1942 मे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया।जिसके तहत सरदार पटेल के साथ कई अन्य स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं को तीन वर्ष के लिए कारागार भेज दिया गया।

भारत की स्वतंत्रता के तुरंत बाद 562 रियासतों के कई महाराजा और नवाब यह मानने लगे थे कि वे पूर्व की तरह अपने-अपने रजवाड़े के स्वतंत्र शासक बन जाएँगे। उनका तर्क था कि स्वतंत्र भारत की सरकार को उन्हें स्वतंत्र समझना चाहिए। ये तो सरदार पटेल की  दूरदृष्टि, बुद्धिमत्ता और कूटनीति थी कि जिसने उन राजाओं को आश्वस्त किया और वे अंततः भारत के गणराज्य मे सम्मिलित होने के लिए सहमत हो गए।

मुख्य तथ्यः

  1. उन्होंने खेड़ा-1918, बोरसद-1924 और बारडोली-1928 जैसे प्रसिद्ध और सफल सत्याग्रहों मे किसानों की अगुआई की।
  2. वर्ष 1924 मे अहमदाबाद महानगर पालिका के अध्यक्ष चुने गए और अप्रैल 1928 तक कार्य किया।
  3. वर्ष 1931 मे कराची अधिवेशन मे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।
  4. स्वतंत्र भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री, गृहमंत्री और सूचना एवं प्रसारण मंत्री नियुक्त हुए।
  5. स्वतंत्रता के पश्चात अखंड भारत की रचनाकरने मे अहम भूमिका निभाई।
  6. 1950 तक चार बार विभिन्न समय पर भारत के कार्यकारी प्रधानमंत्री रहे।
  7. अध्यक्ष के रूप मे महत्वपूर्ण विषयों के नियमों का प्रारूप बनाकर भारतीय संविधान बनाया।
  8. उन्हें मरणोपरांत 1991 मे भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
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