शूलपानेश्वर महादेव मंदिर ध्वजारोहण


शूलपानेश्वर महादेव मंदिर
प्राचीन शूलपाणेश्वर मंदिर, नर्मदा नदी और देव गंगा नदी के संगम पर मौजूद सरदार सरोवर बांध से पांच किलोमीटर की दूरी पर मणीबेली गाँव (महाराष्ट्र) के पास स्थित है।
यह मंदिर पौराणिक मान्यता पर आधारित है कि यह स्वयं भगवान शिव द्वारा स्थापित किया गया था और साथ ही एक स्वयंभू लिंग भी है। इसलिए, इस मंदिर को नर्मदा नदी के तट पर पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है।
हिंदू धर्मग्रंथ जैसे अग्नि महापुराण, स्कन्द महापुराण, वायुपुराण और अन्य पुराणों में मंदिर को नर्मदा नदी के तट पर पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है। यह भृगु पर्वत के रूप में जानी जाने वाली पवित्र पहाड़ी के बहुत करीब था और घने जंगलों के साथ-साथ शूलपाणेश्वर जलप्रपात के मनोरम दृश्यों के लिए जाना जाता था । स्कन्द पुराण के अनुसार, यह तीर्थ एक परशु अर्थात कुल्हाड़ी की तरह है, जो पापों को नष्ट करता है ।
भगवान शिव ने अंधकासुर राक्षस को त्रिशूल से नष्ट किया था। इस त्रिशूल पर लगे रक्त के धब्बे पड़े थे उन्हें हटाया नहीं जा सका, भगवान शिव जंगलमे भ्रमण करते हुए उपरोक्त स्थान पर आए और वहाँ जमीन पर त्रिशूल से टकराने से पानी की एक धारा बह निकली थी। इस पानी से त्रिशूल पर लगे रक्त के धब्बे हट गए थे। इस प्रकार भगवान शिव के त्रिशूल पर लगे रक्त के धब्बे हटा दिए गए थे। भगवान शिव की शूल (पीड़ा) पानी से दूर हो गई थी इस कारण से, यहां के मंदिर को शूलपाणेश्वर नाम से जाना जाता है
सरदार सरोवर बाँध के निर्माण के कारण, यह मंदिर १९९१ में सरोवर में डूब गया था, लेकिन गुजरात सरकार द्वारा नए शूलपाणेश्वर मंदिर का स्थान गोरा पुल के पास बाएं किनारे पर १६० फीट ऊंची पहाड़ी पर तय किया गया था और दिनांक ०७/०५/१९९४ के रोज नए शूलपाणेश्वर मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा शास्त्र संस्कार द्वारा किया गया। यह स्थान और मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा उस समय के शंकराचार्य और धर्माचार्यों के परामर्श से की गई थी ।
हर साल इस स्थान पर स्थानीय लोगों और महाराष्ट्र के पहाड़ी लोगों और वनवासियों के लिए चैत्र वद तेरस, चौदस के दिन मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शूलपाणेश्वर मंदिर के दर्शन का लाभ उठाते हैं। शूलपाणेश्वर मंदिर वास्तव में आस्था और विश्वास का प्रतीक है।