नर्मदा महा आरती यजमान

नर्मदा महा आरती
सम्पूर्ण जीव सृष्टि का पोषण करने वाली नदी को हमारी संस्कृति में माँ का स्थान दिया गया है। गुजरात के लिए ऐसी ही एक नदी है नमामि देवी नर्मदे- नर्मदा। माँ समान नर्मदा हमारे लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी बच्चे की पालन पोषण के लिए माँ का दूध है। नर्म या नर्मदा – जिनके दर्शन मात्र से हमें नर्म अर्थात् सुख की अनुभूति होती है । नर्म का एक और अर्थ संस्कृत में खेलना है जो हमें सिखाता है कि जीवन एक खेल है। भारतीय पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गंगा नदी में डुबकी लगाने से एवं यमुना नदी के जल आचमन से मनुष्य पवित्र होते हैं जबकि माँ नर्मदा के दर्शन मात्र से ही मनुष्य पवित्र हो जाते हैं। देवी के साथ-साथ लोक माता के रूप में पूज्य; रेवा के नाम से भी जानी जाने वाली माँ नर्मदा के बारे में आदि-गुरु शंकराचार्य से लेकर नये युग के कवियों ने भजनों / स्तुतियों की रचना की है । सदियों से, मध्य और पश्चिमी भारत की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में माँ नर्मदा का प्रमुख योगदान रहा है। मध्य प्रदेश के अमरकंटक में नर्मद कुंड से निकलकर लगभग ११७३ किमी. की दूरी तय करके नर्मदा नदी एकता नगर तक पहुँचती है जहाँ भारत का दूसरा सबसे बड़ा कंक्रीट डैम- सरदार सरोवर बांध के माध्यम से उसका पानी गुजरात और राजस्थान के सूखे क्षेत्रों में पहुँचकर लाखों लोगों की प्यास बुझाता है। और इसलिए इस बांध को गुजरात जीवन दोरी माना जाता हैI इस बांध के जलाशय में विलीन हो चुके पौराणिक पवित्र शूलपाणेश्वर मंदिर का पुन: र्निर्माण किया गया है। भगवान शूलपाणेश्वर महादेव के सानिध्य में नव-निर्मित माँ नर्मदा घाट पर माँ नर्मदा की साधना, आराधना एवं भक्ति की त्रिवेणी संगम द्वारा निर्मित पवित्रता का प्रतिबिंब प्रतिदिन शाम ०७:३० बजे से ०८:०० के बीच नर्मदा महाआरती के रूप में दिखता है। जिसमें मुख्य रूप से नर्मदाजी की आरती और नर्मदा अष्टक के गान के साथ धूप-आरती से माँ नर्मदा को अर्घ्य दिया जाता है ।